ग्वालियर । जिला ग्वालियर में आने वाले केदारपुर के सर्वे क्रमांक 482 की वो जमीन जो हाल ही में काफी चर्चा में रही है। उसे हाईकोर्ट में शासन 11 साल की सुनवाई के बाद भी चरनोई की साबित करने में असफल रहा है। इतना ही नहीं यह भी साबित नहीं हुआ है कि केदारपुर की जमीन को फर्जी डिक्री के आधार पर हथियाया गया था। इस कारण न्यायालय ने शासन पक्ष के सभी तर्को से असहमति जताते हुए धोखाधड़ी के मामले में आरोपी बनाए गए तीनों आरोपियों को दोषमुक्त कर दिया है। इसके साथ ही केदारपुर जमीन से जुड़े से विवाद पर विराम लगा है। कुछ समय पहले इसी जमीन को फर्जी डिक्री पर खरीदने का हवाला देते हुए तत्कालीन तहसीलदार ने कुछ आदेश निकाले थे। जिसमें वह खुद ही फंसे नजर आ रहे हैं।
जाने क्या है पूरा मामला
15 फरवरी 2006 को झांसी रोड थाने में महादेवी पत्नी उम्मेद सिंह गुर्जर, भारत सिंह पुत्र जरदान सिंह एवं वृन्दावन सिंह पुत्र जरदान सिंह के खिलाफ कूटरचित दस्तावेजों एवं न्यायालय की फर्जी डिक्री के आधार पर धारा 420,467,468 एवं 471 दर्ज किया गया था। इसमें शासन का मुख्य तर्क था कि इस जमीन को प्रथम अतिरिक्त व्यवहार न्यायाधीश वर्ग दो के प्रकरण क्रमांक 69 ए/87 में 11 फरवरी 1992 में दिए गए आदेश के जरिए प्राप्त किया गया है। साथ ही कूटरचित दस्तावेजों के आधार पर 12 मई 2005 को नामांतरण करा लिया गया।
इस सिलसिले में तत्कालीन जिला न्यायाधीश ने भी अपने 24 जनवरी 2006 के आदेश में कूटरचित दस्तावेजों से जमीन हासिल करना मानते हुए जिलाधीश से जांच कराई थी। लेकिन 9 अक्टूबर 2013 को न्यायालय में अभियोजन पत्र पेश होने के बाद जब साक्षियों के कथन हुए तब राजस्व अधिकारियों की ओर से संबंधित मामले के प्रमाणित दस्तावेज पेश नहीं किए गए। इसके लिए न्यायालय और शासकीय अभिभाषक द्वारा कई बार पत्राचार कर प्रमाणित दस्तावेज मांगे गए लेकिन उपलब्ध नहीं कराए जा सके। और तो और अनुसंधानकर्ता डीएस ठाकुर ने भी स्वीकार किया कि इस मामले में राजस्व न्यायालय की फाइलें देखने को नहीं मिली। जिससे उन्हें जब्त नहीं किया जा सका। ऐसे में फोटो कापी के आधार पर दस्तावेज प्रमाणिक नहीं माने जा सकते।
न्यायालय में साबित नहीं हुआ जमीन को फर्जी डिग्री पर हथियाया गया है, आरोपी दोषमुक्त
सप्तम अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश रवि झारोला ने 13 मई 2024 को जारी अपने आदेश में अभियोजन पक्ष के खिलाफ प्रतिकूल टिप्पणी करते हुए कहा कि उसकी ओर से प्रमाणिक अभिलेख के अलावा प्रविष्टि, खसरा, किश्तवंदी, खतौनी के साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किए गए हैं। ऐसे कोई साक्ष्य नहीं आए हैं जिससे विवादित भूमि को चरनोई का माना जा सके। मनीष वर्मा से आरोपियों से क्रय-विक्रय और रुपए के संव्यवहार लेन-देन किया गया है। इस तरह शासन मामले को संदेह से परे साबित करने में असफल रहा है इसलिए अभियुक्तों को आरोप से दोषमुक्त किया जाता है।