लखनऊ / नई दिल्ली : मोबाइल एप के जरिये तत्काल कर्ज देने और बाद में उसकी वसूली के लिए कर्जधारकों के निजी डाटा का दुरुपयोग कर उन्हें परेशान करने के मामले में चीनी स्वामित्व वाली एक गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी (एनबीएफसी) के 288 करोड़ रुपये जब्त कर लिए गए। यह कार्रवाई विदेशी विनिमय प्रबंधन अधिनियम (फेमा) के तहत की गई। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने बुधवार को जारी एक बयान में बताया कि सीमा शुल्क आयुक्त, चेन्नई की ओर से चार फरवरी को एक आदेश जारी किया गया, जिसमें इसकी पुष्टि की गई है, कि चीनी स्वामित्व वाली कंपनी पीसी फाइनेंशियल सर्विसेज (पीसीएफएस) के खिलाफ की गई कार्रवाई में उसका पूरा फंड जब्त कर लिया गया।
केंद्रीय जांच एजेंसी ने फेमा के तहत पिछले साल जारी किए गए तीन जब्ती आदेशों द्वारा एनबीएफसी के बैंक खातों और भुगतान माध्यमों में जमा 288 करोड़ रुपये जब्त किए हैं। ईडी ने प्रिवेंशन आफ मनी लांड्रिंग एक्ट (पीएमएलए) के तहत मोबाइल एप के जरिये तत्काल कर्ज उपलब्ध कराने वाली कई एनबीएएफसी और फिनटेक कंपनियों के खिलाफ जांच शुरू की थी। ये आरोप था कि ये कंपनियां एप के जरिये कर्जधारकों का निजी डाटा इकट्ठा कर लेती थीं और उच्च ब्याज की वसूली के लिए उनका दुरुपयोग करती थीं. काल सेंटर के जरिये कर्जधारकों के साथ दुर्व्यवहार किया जाता था और उन्हें धमकियां भी दी जाती थीं।इसी क्रम में पीसीएफएस का नाम भी सामने आया था।
ईडी ने बताया कि कंपनी संदिग्ध विदेशी भुगतान के लिए मोबाइल एप कैशबीन के जरिये छोटे कर्ज मुहैया कराती थी. केंद्रीय एजेंसी ने कहा, ‘पीसीएफएस का मालिक चीन निवासी झोउ याहुई है. जांच में पाया गया कि पीसीएफएस की विदेशी मातृ कंपनियां बहुत कम समय में लोगों को कर्ज देने के लिए 173 करोड़ रुपये का विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआइ) ले आईं. इसके बाद कंपनी ने उन सावफ्टवेयर सेवाओं के नाम पर चीन की नियंत्रण वाली विदेशी कंपनियों को 429.29 करोड़ रुपये का भुगतान कर दिया जो अस्तित्व में थे ही नहीं।
यही नहीं पीसीएफएस ने 941 करोड़ रुपये का घरेलू व्यय भी दिखा दिया. जांच में पाया गया कि कंपनी के कंट्री हेड झांग होंग के निर्देश पर डमी भारतीय निदेशकों को बिना किसी वजह बेहिसाब भुगतान किया गया।
सूदखोरी के खिलाफ मानवाधिकार आयोग भी सख्त :
आपको बता दें कि मानवाधिकार आयोग ने सूदखोरों से निपटने के लिए सरकार से सख्त कार्रवाई के निर्देश के साथ कार्ययोजना प्रस्तुत करने का आदेश दिया था। जिसमें सरकार से कहा है कि व्यापार के नाम पर लोन राशि पर अत्यधिक ब्याज लेने को कानूनी नियंत्रण में लेने के संबंध में सरकार अपना मत प्रस्तुत करें।
सूदखोरी के मामलों को लेकर आयोग ने कहा कि राज्य सरकार बताएं कि राज्य में सूदखोरी के व्यक्तिगत, फर्म एवं कंपनी की ओर से किए जा रहे व्यापार के नाम पर लोन राशि पर अत्यधिक ब्याज के लेन-देन को कानूनन किस प्रकार से नियंत्रण किया जा सकता है। क्या सूदखोरी से लगातार योजनाबद्ध तरीके से किए जाने वाले अपराधों को राज्य स्तरीय विधि से अलग श्रेणी के अपराध घोषित कर भारी दंड के प्रावधान किए जा सकते हैं ?
क्या सरकार मानव अधिकारी संरक्षण अधिनियम-1993 की धारा 30 के तहत सूदखोरी के प्रकरणों के रूप में विशिष्ट सत्र न्यायालयों में विचारणीय प्रकरण घोषित कर सकती है या फिर केंद्र सरकार को इस संबंध में कानून बनाने की अनुशंसा कर सकती है? सरकार चाहे तो इस विषय पर किसी अन्य प्रकार का मत प्रस्तुत कर सकती है. विभाग के स्तर का नहीं बल्कि पूरी सरकार के स्तर का मत होना चाहिए. आयोग ने आदेश की प्रति गृह विभाग के एसीएस को प्रेषित करने के निर्देश दिए है। एसीएस इस मामले में उच्च अधिकारी के जरिए राज्य सरकार का पक्ष प्रस्तुत करें।