देश की राजनीति में अतीत के पन्नों में अगर किसी नेता के अंदाज ने सबसे ज्यादा लोगों को अपनी ओर खींचा है तो उसका नाम है लालू प्रसाद यादव. बिहार के एक गरीब परिवार से लेकर राजनीति के शिखर तक पहुंचने, शोहरत की बुलंदियों को छूकर भ्रष्टाचार के दलदल में चले जाने तक।
बिहार / 950 करोड़ के चारा घोटाला में एक बार फिर सीबीआई की अदालत ने लालू यादव दोषी ठहराया है। लालू यादव के खिलाफ सजा का ऐलान 21 मार्च को होगा। इस महाघोटाला का मुख्य आरोपी लालू यादव को एक समय गिरफ्तार करने के लिए सेना की मदद तक मांगनी पड़ी थी। हालांकि, सेना की मदद न मिलने वाली बात जब मीडिया में लीक हुई थी तो लोकसभा में जमकर हंगामा भी हुआ था।
बता दें कि लालू की गिरफ्तारी के लिए 29 जुलाई 1997 की रात को सीएम आवास घेर लिया गया था। आवास के चारों ओर रैपिड एक्शन फोर्स की तैनाती कर दी गयी। लेकिन लालू इतनी आसानी से मानने वाले नहीं थे। उनके समर्थक खुलेआम हिंसक विरोध की धमकी दे रहे थे। हालात से निपटने के लिए सेना की तैनाती तक की चर्चा होने लगी। आखिरकार लालू को सीबीआई के आगे झुकना पड़ा और अगली सुबह 30 जुलाई 1997 को लालू प्रसाद ने चुपचाप सीबीआई कोर्ट में सरेंडर दिया। वहां से उन्हें जेल भेज दिया गया।
इस किस्से का जिक्र लालू प्रसाद यादव ने अपनी जीवनी ‘गोपालगंज से रायसीना: मेरी राजनीतिक यात्रा’ में भी किया है। लालू लिखते हैं, ‘सीबीआई के जॉइंट डायरेक्टर यू.एन बिस्वास मुझे गिरफ्तार करने पर आतुर थे। सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल मेरी गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी। मैंने भी घोषणा कर दी थी कि मैं निर्धारित तिथि पर खुद आत्मसमर्पण कर दूंगा। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि वो मुझे गिरफ्तार करने पर क्यों आतुर थे।
लालू प्रसाद यादव आगे लिखते हैं, ‘मुझे गिरफ्तार करने के लिए बिस्वास दानापुर के सेना मुख्यालय पहुंच गए थे और वहां अधिकारियों से मदद मांगी थी। ये सब देखकर सेना के अधिकारी भी हैरान रह गए थे। क्योंकि ऐसा पहले कभी नहीं देखा गया था कि एक सामान्य व्यक्ति के गिरफ्तार करने के लिए सशस्त्र बलों से संपर्क किया गया हो। सेना ने बिस्वास की मदद की गुहार को खारिज कर दिया था। मैं भी सीबीआई अधिकारियों की कार्रवाई से हैरान रह गया था।
बिस्वास ने भी इसका जिक्र करते हुए एक किस्सा बताया था, हमने पुलिस और प्रशासन सबसे मदद मांगी थी। जैसे ही टीम लालू यादव के घर पहुंची तो हमने घेर लिया गया था। कैबिनेट सेक्रेटरी को भी इस बारे में सूचना दी गई थी, लेकिन कोई मदद नहीं मिली थी।
इसके बाद विश्वास भी अपनी ज़िद पर अड़े थे और उन्होंने एक दिन दानापुर कैंट में ब्रिगेडियर RP नौटियाल से मिलने का आदेश दिया और कहा कि सेना को की मदद से लालू यादव की गिरफ़्तारी की जाए, लेकिन ब्रिगेडियर नौटियाल ने अपने ऊपर के अधिकारियों से बातचीत के बाद यह कहकर अपने हाथ खड़े कर दिए कि सेना का काम मुश्किल के समय में सिविल प्रशासन की मदद करना है ना कि पुलिस के बदले किसी काम में भाग लेना।
जमानत के बाद हाथी की सवारी :-
बेउर जेल से जमानत के बाद हाथी पर सवार होकर लालू यादव घर गए थे, लालू यादव ने राजनीति में हर मौके को इवेंट के तौर पर लिया है। चाहे जेल जाने की बात हो या जमानत मिलने की बात। हर मौके पर खुद को इस तरह से प्रदर्शित करते थे कि उन पर इसका कोई असर नहीं है, वो ही सबकुछ है। चारा घोटाले के आरोपी लालू यादव के इन प्रदर्शनों को कोर्ट ने गंभीरता से लिया और इसे गलत भी माना था।
देवघर कोषागार मामले की सुनवाई CBI स्पेशल कोर्ट के जज शिवपाल सिंह की अदालत में चल रही थी। कोर्ट लालू यादव को दोषी करार दे चुकी थी। अब सजा का ऐलान होना बाकी रह गया था। लालू यादव ने पेशी के दौरान जज शिवपाल सिंह से कहा था हुजूर, बेल दे दिया जाए। इस जज ने कहा, क्या आपको इसलिए जमानत दे दिया जाए कि आप हाथी पर चढ़कर बाहर निकले और पूरे शहर घूमें।
गरीब रथ पर सवार होकर कोर्ट में गए थे पेश होने :-
2002 में जब लालू यादव चारा घोटाला मामले में रांची के स्पेशल कोर्ट में पेश होने के लिए आए थे, तब का नजारा भी दिलचस्प था। लालू यादव गरीब रथ पर सवार होकर गए थे और उनके साथ करीब एक हजार गाड़ियों का काफिला गया था। जिस तरफ से यह काफिला गुजरता, उस तरफ कुछ देर तक धूल से कुछ दिखाई नहीं देता था। अगल-बगल वाले साइड होकर खड़े हो जाते थे। इतना सब कुछ करने बावजूद कोर्ट ने तब लालू यादव को न्यायिक हिरासत में जेल भेजा दिया था।