ईमानदार पत्रकारों के सामने समस्यों का अंबार दो जून की रोटी जुटा ना भी मुश्किल ?

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ईमानदार पत्रकारों के सामने समस्यों का अंबार दो जून की रोटी जुटा ना भी मुश्किल ?

ग्वालियर / वैसे तो पत्रकारिता का पेशा भी एक तरीक़े से समाज सेवा ही है, और जनता की आवाज जिस तरह विधानसभा औऱ संसद में जनप्रतिनिधि उठता है ठीक इसी तरह जब जनता की ये भी नही सुनते तब पत्रकार जनता की आवाज बनकर कलम की तलवार से तीखा वार करता है ? वर्तमान में पत्रकारिता का व्यावसायिक करण होने के बाद से सच्चे औऱ ईमानदार पत्रकारों के लिए सबसे बड़ी चुनौती के रुप मे नज़र आ राह है पत्रकार को सबसे बड़ी समस्या यानी आय के साधन अब व्यापारी पत्रकारिता ने खत्म से कर दिये है और अनियमित तनख्वाह(वेतन) की समस्या से पत्रकार जूझ रहा है।

जिसके चलते इन पत्रकारों को दो वक्त की रोटी जुटाना भी मुश्किल हो जाता है। इस लिए जो भी लोग पत्रकारिता से जुड़े होते हैं, वे अपनी आय के दूसरे स्रोत खोजते नज़र आ रहे हैं ताकि परिवार का खर्च चलाने में मुश्किलें ना आएं। ऐसे कहने को तो पत्रकारिता को देश का चौथा स्तंभ माना जाता है, किंतु पत्रकारों को जिस प्रकार की असुविधा का सामना करना पड़ता है उससे ना तो देश मज़बूत होगा और ना ही पत्रकारों का परिवार, आएंगी तो सिर्फ सामाजिक सुरक्षा की दरारें ?

पत्रकारों को काफी कम वेतन प्राप्त होता है . जिसकी वजह से उन पर दबाव ज़्यादा होता है। पत्रकार संगठनों ने भी सिर्फ अपनी दुकानें सजा रखी है।इतनाही नही कॉन्ट्रैक्ट आधारित नौकरी के चलते पत्रकारों की स्वतंत्रता खत्म हो रही है ?

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