MP Breaking : चार वर्ष से नहीं हुए सहकारिता के चुनाव, सदस्यता सूची ही नहीं हुई तैयार

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भोपाल । प्रदेश में सहकारिता आंदोलन को गति देने की बातें तो बहुत होती हैं पर चार साल से चुनाव ही नहीं हुए हैं। वर्ष 2018 से प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियों का संचालक निर्वाचित संचालक मंडल के स्थान पर प्रशासक कर रहे हैं जिला सहकारी केंद्रीय बैंकों की भी यही स्थिति है। चुनाव न होने का मुख्य कारण सदस्यता सूची तैयार न होना है। इसके लिए राज्य सहकारी निर्वाचन प्राधिकारी कार्यालय ने सभी संस्थाओं को सदस्यता सूची तैयार करके देने के लिए कहा है।

प्रदेश में चार हजार 538 सहकारी समितियां हैं। इनमें से चार हजार 300 समितियों के चुनाव चार साल से नहीं हुए हैं

इसी तरह वनोपज संघ की आठ सौ, विपणन संघ और मत्स्य महासंघ की ढाई-ढाई सौ समितियों के चुनाव होने बाकी हैं। चुनाव न होने के कारण बैंक और जिला स्तरीय समितियों के चुनान नहीं हो पा रहे हैं। संचालक मंडल न होने के कारण समितियां नीतिगत निर्णय भी नहीं कर पा रही हैं।

दरअसल, प्रशासक को केवल सामान्य कामकाज के संचालन का अधिकार होता है। भोपाल जिला सहकारी केंद्रीय बैंक के पूर्व अध्यक्ष विजय तिवारी का कहना है कि चुनाव न होने से सहकारिता का विस्तार प्रभावित हुआ है अभी केवल ऋण, खाद-बीज वितरण के काम तक ही समितियां सीमित हो गई हैं। नई गतिविधियां नहीं हो रही हैं।

मध्‍य प्रदेश में फरवरी 2018 में प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियों के हुए थे चुनाव। समितियों और सहकारी बैंकों में प्रशासक संभाल रहे हैं कामकाज

किसानों को समितियों से जोड़ने का जो काम समिति के संचालक मंडल द्वारा किया जाता था, वह बंद है। इसका असर समितियों की आर्थिक स्थिति पर भी पड़ रहा है। बड़ी संख्या में किसान समय पर ऋण न जमा करने के कारण अपात्र हो गए हैं। इन्हें पात्र बनाकर मुख्यधारा में लाने के प्रभावी प्रयास भी नहीं हो रहे हैं। जबकि, निष्पक्ष चुनाव के लिए केंद्र सरकार ने संविधान में संशोधन करके निर्वाचन प्राधिकारी की नियुक्ति की व्यवस्था बना दी है। प्रदेश में राज्य सहकारी निर्वाचन प्राधिकारी संस्था का गठन भी हो चुका है पर चुनाव अब तक नहीं हुए हैं।

उधर, निर्वाचन प्राधिकारी कार्यालय ने एक बार फिर सहकारी समितियों से सदस्यता सूची की जानकारी भेजने के लिए कहा है। दरअसल, समय पर ऋण न चुकाने के कारण 12 लाख से अधिक किसान अपात्र हो चुके हैं। इनके बिना चुनाव कराया जाता है तो बड़ी संख्या में किसानों का प्रतिनिधित्व समितियों में नहीं होगा।

यही कारण है कि सरकार ने इन किसानों को पात्र बनाने के लिए ब्याज माफी देने की घोषणा की है। इसके लिए बजट में प्रविधान भी किया जा चुका है पर पांच माह बीतने के बाद भी कृषि विभाग समझौता योजना तैयार नहीं कर पाया है। जबकि, सहकारिता विभाग ने योजना का प्रारूप तैयार करके कृषि विभाग को भेज दिया है।

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